पुराणों के अनुसार मगध पर शासन करने वाला पहला वंश वृहद्रथ वंश > जरासंध था। परन्तु बौद्ध ग्रंथों के अनुसार मगध पर पहला शासक हर्यक वंश (पितृहंता वंश) था।
हर्यक वंश (544-412 ईo पूo)
बिम्बिसार –\sइस वंश का पहला शासक बिम्बिसार था। बिम्बिसार 15 वर्ष की आयु में 544 ईo पूo मगध का शासक बना। मत्स्य पुराण में इसे क्षैत्रोजस और जैन साहित्य में श्रेणिक कहा गया। इसने अवन्ति नरेश चण्ड प्रद्योत से मित्रता की और अपने राजवैद्य जीवक को उसके राज्य में चिकित्सा के लिए भेजा। इसने मगध की गद्दी पर 52 वर्ष के लंबे समय तक शासन किया। इसने अंग राज्य को जीता और अपने पुत्र कुणिक को वहाँ का शासक बनाया।
शिशुनाग –\sहर्यक वंश के अंतिम शासक को पदच्युत कर इसने मगध की गद्दी पर अधिकार कर लिया। इस तरह हर्यक वंश की जगह अब मगध पर एक नए राजवंश शिशुनाग वंश की स्थापना की। ये राज्य की राजधानी को पाटलिपुत्र से वैशाली ले आया। इसने अवंति और वत्स संघ पर अधिकार कर उसे मगध साम्राज्य में मिला लिया।
अजातशत्रु –\s492 ईo पूo कुणिक ने अपने पिता बिम्बिसार की हत्या कर दी और अजातशत्रु के नाम से शासक बना। इसका काशी और वज्जि संघ से लंबे समय तक संघर्ष चला और अंत में इसने उन्हें अपने अधीन कर लिया। इसका लिच्छवियों से युद्ध हुआ जिसमे इसने रथमूसल और महाशिलाकण्टक नामक हाथियों का प्रयोग किया था। इसी के शासन काल के 8 वें वर्ष (7 साल बाद) महात्मा बुद्ध को महानिर्वाण की प्राप्ति हुयी। इसी के समय राजगृह की सप्तपर्णी गुफा में प्रथम बौद्ध संगीति हुयी थी।
उदायिन –\sउदायिन ने ही पाटलिपुत्र की स्थापना कुसुमपुर के नाम से की और उसे अपनी राजधानी बनाया था। यह जैन धर्म का समर्थक था। परंतु भिक्षु वेश धारण करने के कारण एक राजकुमार ने इसकी हत्या कर दी। इसके बाद क्रमशः अनिरुद्ध, मुण्डक, नाग दशक/दर्शक इस वंश के शासक हुए।
नाग दशक/दर्शक –\sइसे इसके अमात्य शिशुनाग ने पदच्युत कर गद्दी पर अधिकार कर लिया।
शिशुनाग वंश (412 -344 ईo पूo)
कालाशोक/काकवर्ण –\sइसने पाटलिपुत्र को पुनः साम्राज्य की राजधानी बनाया। इसी के शासनकाल के 10वें वर्ष (महात्मा बुद्ध के महापरिनिर्वाण के लगभग 100 वर्ष बाद) वैशाली में द्वितीय बौद्ध संगीति हुयी। पाटलिपुत्र में घूमते समय महापद्मनंद ने चाकू घोंप कर इसकी हत्या कर दी। इसके बाद नन्दिवर्धन/महानन्दिन मगध का शासक बना। यही शिशुनाग वंश का अंतिम शासक था।
नंद वंश (344-324/23 ईo पूo)\sइस वंश में कुल 9 शासक हुए जो सब भाई ही थे।
महापद्मनंद –\sपुराणों के अनुसार ये शूद्र, सर्वक्षत्रांतक, भार्गव (दूसरे परशुराम का अवतार) था। जैन ग्रंथों में इसे नापित दास कहा गया है। पाली ग्रंथ में इसे उग्रसेन (जिसके पास भयंकर सेना हो) कहा गया है। प्रारम्भ में ये डाकुओं के गिरोह का राजा/सरदार था। प्रसिद्ध व्याकरणाचार्य पाणिनी इसके मित्र व दरबारी थे।
घनांनद –\sयूनानी लेखकों ने इसे अग्रमीज कहा है। इसका सेनापति भद्रसाल था। इसके मंत्री क्रमशः – जैनी शकटाल > स्थूलभद्र > श्रीयक हुए। चन्द्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य की सहायता से इसका अंत कर दिया और इसके बाद मगध मर मौर्य